खनन माफियाओं के हौसले बुलंद, कवरेज के दौरान खनन माफियाओं ने पत्रकार से की धक्का-मुक्की
आपको बताते चले मामला बहादराबाद के सुमन नगर चौकी क्षेत्र का है। जहां पर एक पत्रकार अपने किसी कार्य से जा रहा था पत्रकार ने देखा की वहां पर वन विभाग की टीम ने दो ट्रैक्टर ट्राली को पकड़ा हुआ है जिसमें डस्ट और बजरी थी। जब पत्रकार ने खबर कवरेज करने के लिए अपना फोन निकाला और कवरेज करने लगे तो तभी सचिन चौहान नामक व्यक्ति ने आकर अपनी दबंगई दिखाते हुए पत्रकार के साथ अभद्रता की। और पत्रकार का मोबाइल छीनने लगा। जिसकी सूचना पत्रकार ने तुरंत सुमन नगर चौकी पुलिस को दी वही मौके पर पहुंची चेतक पुलिस की मौजूदगी में भी खनन माफियाओं के हौसले बुलंद थे और वह लगातार पत्रकार के साथ अभद्रता करते रहे। मौके पर पहुंची पुलिस ने पहले तो खनन माफियाओं को अभद्रता करने की ढील दी। बाद में मामले को और बढ़ता देख पुलिस कर्मियों ने माफियाओं को दूसरी ओर धकेल कर अपनी फॉर्मेलिटी पूरी की है। पुलिस कर्मियों के सामने खनन माफियाओं के इतने हौसले बुलंद, कहीं ना कहीं सुमन नगर चौकी पुलिस की सांठगांठ पर इशारा करती है। हालांकि पत्रकार के साथ अभद्रता सुमन नगर पुलिस के सामने पहली नहीं है इससे पहले भी सुमन नगर पुलिस के सामने पत्रकार के साथ मारपीट और गाली गलौज के कई मामले हो चुके हैं फिर भी सुमन नगर चौकी पुलिस सचेत नहीं है। पीड़ित पत्रकार जब अपने ऊपर हुए हमले की लिखित शिकायत रानीपुर कोतवाली लेकर पहुंचा तो पहले से ही खनन माफिया कोतवाल के सामने विराजमान थे। कोतवाल ने भी खनन माफिया और हमला करने वाले सचिन चौहान को अपना पूरा समय दिया। लेकिन जब पत्रकार अपनी लिखित शिकायत लेकर कोतवाल के पास पहुंचा और अपना दर्द बयान करने लगा तो कोतवाल ने पत्रकार की एक न सुनी और जरूरी काम कहते हुए वहां से निकल गए। हालांकि पत्रकार फिर इंसाफ की गुहार लगाने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के दरबार में पहुंचा, वहां पुलिसकर्मियों ने इंसाफ का आश्वासन दिया है। अगर इस पूरे प्रकरण में देखा जाए तो कहीं ना कहीं पुलिस की ढीली लचक पत्रकार के लिए घातक साबित हो सकती थी। वही हरिद्वार जिले की बात की जाए तो पत्रकारों को अपनी लेखनी से सच्चाई उजागर करना अब भारी पड़ता जा रहा है क्योंकि पत्रकारों पर हमले और झूठे मुकदमे हरिद्वार जिलेेे में आम बात हो गए है। पुलिस प्रशासन भी पत्रकार को नजरअंदाज कर विपक्षी पार्टी का सहयोग करती है। अगर पत्रकार केे विरुद्ध कोई तहरीर आती है तो पत्रकार पर तुरंत मुकदमा दर्ज किया जाता है लेकिन जब पत्रकार पर हमला या कोई
अन्य घटना होती है तो पत्रकार की आवाज को दबा दिया जाता है। इससे पहले भी मंगलौर क्षेत्र में खनन माफियाओं ने दो पत्रकारों को जान से मारने की कोशिश की थी। उसमें भी पुलिस के हाथ खाली है। कई मामलों में जांच चल रही है लेकिन जांच तक ही सीमित है कोई भी कार्रवाई पत्रकारों पर हमला करने वाले आरोपियों पर आज तक नहीं की गई है। जो चौथे स्तंभ की कलम को तोड़ने का कार्य है। नीचे वीडियो देखें
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